थावरचंद गहलोत ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का समर्थन किया है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजा-जजा एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी से दी गई राहत पर केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत भी पुनर्विचार के पक्ष में हैं। उन्होंने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का समर्थन किया है। कानून मंत्री से विधिक राय मांगते हुए इस पत्र में गहलोत ने कहा है, ‘यह महसूस किया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम को प्रभावहीन बनाने के अलावा न्याय प्रणाली पर विपरीत असर डाल सकता है। इसलिए मेरी राय है कि फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करना सही होगा।’
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं और पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की है। उनकी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले के मूल अधिनियम को पुनस्र्थापित किया जाए। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम के उन प्रावधानों के शिथिल कर दिया था जिसके तहत आरोपितों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता था।
सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अधिनियम के दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी कर्मचारियों को सिर्फ नियुक्ति प्राधिकारी की अनुमति से ही गिरफ्तार किया जा सकेगा। जबकि अन्य नागरिकों के मामले में एसएसपी की मंजूरी के बाद ही गिरफ्तारी की जा सकेगी। जरूरी मामलों में मंजूरी देते वक्त एसएसपी गिरफ्तारी के कारणों को भी दर्ज करेंगे। लोजपा ने दायर की याचिका भाजपा के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है। बिहार के दलितों के बीच गहरी पैठ रखने वाली लोजपा ने पीएम को भी पत्र लिखा है। इसमें सरकार से भी इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का अनुरोध किया गया है। पार्टी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कानून ‘दंतहीन’ हो गया है।
Leave a Reply