सिने जगत को एक और झटका, चले गये मध्यवर्गीय सिनेमा के चितचोर

सिने जगत को एक और झटका, चले गये मध्यवर्गीय सिनेमा के चितचोर

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वरिष्ठ पत्रकार पारो शैवलिनी की कलम से

हिंदी सिनेमा के एक ऐसे फिल्मकार जिन्होंने मध्यवर्गीय किरदारों को अपने जेहन में समावेश कर सिनेमा के तिलिस्म भरे संसार से हटकर यथार्थ की दुनिया से दर्शकों का परिचय करवाया। यथार्थ सिनेमा के एक महान चितचोर ने गुरुवार की दोपहर लगभग 2 बजे के आसपास सांताक्रूज़ के अपने निवास पर अंतिम सांस ली।

बासू चटर्जी

90 वर्षीय वासू चटर्जी का जन्म 10 जनवरी 1930 को राजस्थान के अजमेर में हुआ था। मैं पारो शैवलिनी वासु दा की हर उस फ़िल्म का दीवाना था जिसके लिए मेरे योगेश दा ने गीत रचे थे।
संगीतकार रोबिन बनर्जी के स्टंट फिल्मों के गाने लिखकर सिने जगत में जगह बनाने वाले गीतकार योगेश के गीतों को चरम मंजिल पर अगर किसी ने पह॔चाया तो वो थे वासु दा।
1974 से शुरू करूं तो रजनीगन्धा, 76 में दो फ़िल्में छोटी सी बात और चितचोर साथ ही उस पार आदि फिल्मों में योगेश दा के गीतों की काव्यात्मकता की चरम सीमा को आसानी से महसूस किया जा सकता है।
योगेश दा के गोरेगांव स्थित मधुवन में जब भी में मिला वो संगीतकार सलील चौधरी की भी बातें मुझसे साझा करते नहीं थकते थे। सलील दादा के संबंध में योगेश दा अक्सर कहा करते “अगर वो संगीत की बजाय केवल कविताओं की दुनिया में रहते तो बंगाल को एक और रवीन्द्रनाथ मिल जाता।”
वासु दा की उस पार हो या सारा आकाश, पिया का घर हो या एक रूका हुआ फैसला सभी में एक आम आदमी से सिने स्क्रीन पर बड़े कायदे से बातचीत करते वासु चटर्जी नज़र आते हैं। ऋषि कपूर, इमरान खान, योगेश, शत्रुघ्न तिवारी और अब वासु चटर्जी के निधन से ऐसा लगता है मानो हिन्दी सिने जगत को कोरोना की नज़र लग गई है। ईश्वर इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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