जब जैसा, तब तैसा।चतुर को लाज कै
संपादकीय कौन देशभक्त है और कौन नहीं यह निर्णय करना राजनीतिक दलों का काम नहीं है। क्योंकि राजनीति में कोई नीति नहीं होती है। इसके लिए यह लोकोक्ति सटीक लगती है–“जब जैसा तब तैसा,चतुर को लाज कैसा”। राजनीति और कुछ नहीं सिर्फ चतुराई का खेल है। यह निर्लज्ता की प्रौढ़तम कला है। जिन अपकर्मों की […]
Continue Reading