भारत में आधुनिक भूगोल का विकास विषय पर हुआ बेविनार

भारत में आधुनिक भूगोल का विकास विषय पर हुआ बेविनार

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आगामी 10 वर्षों तक हर माह के अंतिम रविवार को पर्यावरण शोध एवं ग्रामीण विकास संस्थान पटना द्वारा राष्ट्रीय बेविनार का आयोजन होगा। उक्त बातें संस्थान के निदेशक सह विराट हिन्दुस्तान संगम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष प्रो. डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह ने कही।

पटना(श्रीमती रिंकु रंजन जायसवाल)। भारत में आधुनिक भूगोल विषय पर राष्ट्रीय बेविनार पर्यावरण शोध एवं ग्रामीण विकास संस्थान पटना के तत्वावधान में आयोजित किया गया। यह भौगोलिक मंच भूगोल पढ़ने वाले छात्रों, शोधकर्ताओं एवं भूगोल अध्यापकों को एक नई दिशा प्रदान करेगी। बेविनार की अध्यक्षता सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के प्रो. डाॅ. के. आर. दीक्षित ने किया। उन्होंने कहा कि भारत में भूगोल विषय का प्रारंभ तभी हो गया था जब भारत देश को एक सीमा के रूप में आरेखित किया गया और भारत माता कहकर पूजा करना आरंभ हुआ था। यहां क्षेत्रीय भूगोल के रूप में अध्ययन करना, नगरीय भूगोल, पर्यटन भूगोल, कृषि भूगोल, जनसंख्या भूगोल के रूप में भूगोल का विकास भारत में हुआ ।
वहीं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जे.एन.यू., नयी दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद हाशिम कुरैशी ने कहा कि भारत में भूगोल की माध्यमिक स्तरीय पढ़ाई सर्वप्रथम लाहौर से प्रारंभ हुयी। मिस्टर डन एक ब्रिटिश शिक्षक थे, जिन्होंने कलकता विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई प्रारंभ करवाई। ढाका विश्वविद्यालय में भारत के प्रथम स्नातकोत्तर छात्रों का ग्रुप तैयार हुआ। इन्होंने बताया कि भारत में आलू और टमाटर को अरब से लाया गया था। जिसमें आलू को पटाटा और टमाटर को बटाटा कहा जाता है, जो भारत में नगदी फसल के रूप में विकसित हुआ। यहां तक कि बैगन भी भारतीय फसल नहीं है, यह भी एक विलायती फसल है। 1858 ई. में देश में तीन विश्वविद्यालय (कलकता, बम्बई एवं मद्रास) की स्थापना हुयी और इसमें भूगोल की पढ़ाई प्रारंभ हुई। वहीं भूगोल सामान्य विषय के रूप में अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शुरू किया गया। डॉ. इबार्दुर रहमान खान विश्वविद्यालय स्तर के भूगोल के पहले भारतीय शिक्षक थे। उन्होंने ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पहले स्नातक स्तर एवं बाद में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल के विभाग को स्थापित किया था। बाद में वे उत्तर प्रदेश में शिक्षा निदेशक बनाए गए थे। वहीं डॉ. डी पी मिश्रा पहले भूगोलविद रहे जो मुख्यमंत्री भी बने।
दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में मद्रास विश्वविद्यालय चेन्नई के प्रोफेसर डाॅ. प्रेम शंकर तिवारी ने दक्षिण भारत में भूगोल के विकास पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि 19वीं शताब्दी में मद्रास के एक स्कूल से भूगोल की पढ़ाई प्रारंभ हुई थी और स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर भी भूगोल की पढ़ाई मद्रास विश्वविद्यालय से ही प्रारंभ हुई थी। भारत में नगरीय नियोजन की पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से ही प्रारंभ हुई थी। आधुनिक भूगोल का सही रूप में पढ़ाई प्रारंभ मद्रास वि.वि. से ही हुआ। उन्होंने कहा कि मुंबई विश्वविद्यालय के प्रिंसिपल गिल्बर्ट ग्रेटर ने समाजशास्त्र विभाग में भूगोल की पढ़ाई आरंभ करायी थी। मद्रास विश्वविद्यालय में 1891 ई. में डॉ. सुब्रमण्यम अय्यर ने भूगोल के विकास के लिए एक कमिटि गठित किया था, जिसका उद्देश्य पूरे भारत में भूगोल की पढ़ाई किस प्रकार स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर से कराई जाए। इसका रूपरेखा तैयार करना था। कमिटी ने इस विषय पर विंदुवार विचार किया और शिक्षकों के लिए 1923 ई. में एक भूगोल प्रशिक्षण केंद्र आरंभ किया, जिसके नेतृत्वकर्ता के रूप में अय्यर की नियुक्ति हुई। यह मद्रास युनिवर्सिटी में भूगोल विषय के लिए एक बहुत बड़ी घटना थी।
बेविनार का संचालन पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. रास बिहारी प्रसाद सिंह ने किया, उन्होंने कहा कि भूगोल को नई-नई तकनीक से जोड़कर अध्ययन करने की आवश्यकता है, ताकि भूगोल वेत्ताओ से भी इंजीनियरिंग, रिमोट सेटिंग तथा सर्वेक्षण जैसे कार्यों में सहायता लिया जा सके और भूगोल वेत्ताओं को पर्यटन एवं नवनिर्माण में भी कार्य मिल सके।
विषय प्रवेश कराते हुए आयोजक शोध संस्थान के शोध निदेशक प्रोफेसर देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि ऐसे व्याख्यान मालाओं के व्याख्यानों का प्रत्येक वर्ष पुस्तकाकार प्रकाशन किया जाएगा।
इस कार्यक्रम में 150 से अधिक भूगोलवेत्ता संपूर्ण भारत से जुड़े हुए थे। इसमें भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल डाॅ. पृथ्वीश नाग, हजारीबाग से डॉ. कमला प्रसाद व डाॅ. सरोज कुमार, राँची से प्रोफेसर राम कुमार तिवारी व डाॅ. अरुण कुमार, जबलपुर से डॉ. लोकेश श्रीवास्तव, गोरखपुर से डॉ. गणेश पाठक, दरभंगा से डॉ. शारदानंद चौधरी व डाॅ. गौरव सिक्का, बी.एच.यू. से डॉ. राणा पी. बी. सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रोफेसर डॉ. एस. सी. राय व प्रोफेसर डॉ. सुभाष आनंद, अलीगढ़ से प्रोफेसर मुनीर व सलेहा जमाल, उत्तराखंड से डॉ. बी. आर. पंत व डॉ. बी. पी. देवली, जयपुर से प्रोफेसर डॉ. एच. एस. शर्मा, रायपुर से प्रोफेसर डॉ. सरला शर्मा, हैदराबाद से प्रोफेसर डॉ. कल्पना मार्कंडेय व डॉ. अली अख्तर, त्रिची से प्रोफेसर डॉ. कुमारस्वामी, शहडोल से प्रोफेसर डॉ. एस. के. दुबे, नेहु (शिलांग) से प्रोफेसर डॉ. देवेन्द्र नायक, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से प्रो. डाॅ. रविन्द्र जी. जयभाए, जम्मू से डाॅ. सरफराज, चंडीगढ़ से प्रोफेसर सूर्य कान्त, जामिया मिलिया इस्लामिया से प्रोफेसर मोहम्मद इश्तियाक,
बोधगया से प्रोफेसर डॉ. राणा प्रताप, भागलपुर से भूगोल पी जी विभाग से डाॅ. संजय झा, डॉ. राज राजीव, डाॅ. विभुरंजन के अलावा अन्य जगहों में से डाॅ. मुरारी (सीवान), डॉ. अनिल तिवारी, डॉ. किरण त्रिपाठी, डॉ. सीमा मेहता, डॉ. गोपाल पांडा (भुवनेश्वर), डॉ. के.डी. यादव, मौजूद थे।
बेविनार के आयोजक सचिव डॉ. रामेश्वर प्रसाद सिंह थे।
धन्यवाद ज्ञापन नागी संस्था के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ. राणा प्रताप ने किया और तकनीकी सहयोग आशीष कुमार राय ने किया।

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