चुनार के कलिहारी पेड़ का अल्कोहल 45 लाख रूपये में ले जाता है अमेरिका: डॉ. त्रिपाठी

चुनार के कलिहारी पेड़ का अल्कोहल 45 लाख रूपये में ले जाता है अमेरिका: डॉ. त्रिपाठी

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भारतीय जड़ी-बूटी का फायदा उठा रहा है अमेरिका

जीआई नहीं लेने से अपना अधिकार खो रहा है भारत

भारतीय नीम का अल्कोहल मंहगी कीमत पर ले जाता है अमेरिका

पटना (श्रीमती रिंकु रंजन)। सुब्रह्मणियन् स्वामी के नेतृत्व वाली विराट हिन्दुस्तान संगम द्वारा बेविनार का आयोजन किया गया। वर्तमान परिदृश्य में कोरोना महामारी के रोकथाम और इलाज पर देश के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों ने अपनी- अपनी प्रतिक्रिया रखी और इलाज भी बताए। इस बेविनार से जुड़े लोगों ने चिकित्सकों से अपने अपने विचार भी साझा किए और उपचार की भी जानकारी प्राप्त की। कार्यक्रम से जुड़े पटना के वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ सह पूर्व निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य विभाग बिहार सरकार डॉ एच.एन दिवाकर ने इसकी अध्यक्षता की और कोरोना से जुड़ी विशेष जानकारी देते हुए बताया कि यह महामारी आर.एन.ए. वायरस से उपजी है। आर.एन.ए. वायरस से जुड़ी बीमारी कभी स्थिर नहीं रहता है और यह अपना रूप (वैरियंट) बदलते रहता है। कोरोना वायरस नाक और मुंह के द्वारा लंस में पहुंचता है। इसे जब लोग नजरअंदाज करते हैं तब लंस में यह वायरस पहुंचकर लंस को क्षति पहुंचाता है। जिससे बीमार व्यक्ति मृत्यु शैय्या तक पहुंच जाते हैं। जांच की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम स्वाब लेकर किट से जांच करते हैं। इसके बाद भी जब यह बीमारी पकड़ में नहीं आती है तब ब्लड से जांच करते हैं। एक्सरे की जरूरत लंस के क्षति को देखने के लिए की जाती है। इस वायरस 8 दिन तक रहता है और इसके शुरुआती लक्षण में बुखार, बदन दर्द, पेट में मरोड़, हेडेक होता है। डॉक्टर दिवाकर ने कहा कि ऑक्सीमीटर से जांच करते रहना चाहिए। 90-94 को माइल्ड मानते हैं और 90 से कम हो तो सतर्क हो जाना चाहिए। शुरुआती दौर में ही रोगी को लेट नहीं करना चाहिए और ठीक होने पर भी सावधानी बरतनी चाहिए। इसके लिए ऐंटीबॉडी स्ट्रांग रहना चाहिए। वेक्सीन अवश्य लेनी चाहिए। यह ऐंटीबॉडी बनाता है। यदि 50% लोग भी वेक्सीन ले लिया तो समझेंगे हम कोरोना से जंग जीत गये। वाराणसी बीएचयू के आयुर्वेद शास्त्री डॉ. शान्तनु ने कहा कि कोरोन इनफ्लुएंजा का ही रूप है। इनफ्लुएंजा में सुबह- शाम
लौंग, कपूर, दालचीनी डालकर भांप लेना चाहिए। आंवला और नींबू का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए। दूध के साथ या गुड़(शक्कर) के साथ हल्दी का सेवन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वातावरण को साफ रखना चाहिए। गले का माला, बिछावन, पहनने वाले वस्त्र और आस-पास को हमेशा साफ रखें। उन्होंने कहा कि यह 7, 10,12 दिन का माइल्ड पीरियड होता है और इसमें ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए। इससे बचाव के तरीके में वेक्सीन सर्वाधिक कारगर हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लेकर ज्यादा से ज्यादा सहयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने कोरोना रोगी को मुंह के स्वाब को वापस लाने के लिए आधा भूंजा हुआ अजवायन, लौंग, कपूर की पोटली बनाकर उसे लगातार सूंघने की सलाह दी। इससे मुंह का स्वाद जल्द ही लौट आता है। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के चिकित्सक रहे आयुर्वेदाचार्य शैलेंद्र त्रिपाठी ने आयुर्वेद और वनस्पति शास्त्र से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी जो हैरतअंगेज है। उन्होंने बताया कि एक बार केरल के जंगल में हम लोगों की टीम गई थी वनस्पति की खोज में। आदिवासी के साथ जंगलों में भटक कर वापस आते तो थक जाते थे। एक दिन उन्होंने आदिवासी से पूछा हम लोग जाते हैं तो थक जाते हैं लेकिन तुम्हारे चेहरे पर थकान ही नहीं दिखती है। तब आदिवासी ने एक पौधा दिखाते हुए बताया इसका पत्ता हम लोग सुबह-सुबह पी लेते हैं तब काम पर निकलते हैं। जिसे ट्रोयकोफिलस कहते हैं और इसे अमृतप्रास भी कहा जाता है। बाद के दिनों में केरल की एक कंपनी ने जीवनी नाम से दवाई भी बनायी लेकिन किसी कारणवश यह बंद हो गया। बंद होने का कारण उन्होंने बताया कि यहां की कम्पनियां जी.आई. नहीं ले पाती है शायद इसी कारण से यह बंद हो गया आयुर्वेदाचार्य ने कहा कि भागलपुर का जर्दालू आम, कतरनी चूड़ा, मुजफ्फरपुर का लीची सहित कई ऐसी चीजें हैं जो जी.आई. नहीं लेने के कारण अपना अधिकार खोने के कागार पर हैं। आयुर्वेदाचार्य त्रिपाठी ने जड़ी बूटी की भी चर्चा की और कहा कि यहां जड़ी-बूटी को संरक्षण नहीं मिल रहा है, जिससे कई जड़ी बूटी विलुप्त होने की कगार पर है। उन्होंने कहा कि दशमूलारिष्ट के लिए दशमूल का पेड़ चाहिए जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि नीम का अल्कोहल यहां से अमेरिका ले जाया जाता है और वहां मंहगी कीमत मिलती है लेकिन हमारी सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। जिस वजह से इसका फायदा अमेरिका उठा ले जा रहा है। त्रिपाठी ने बताया कि चुनार में ग्लूरोरेसियस जिसे कलिहारी भी बोलते हैं का पेड़ है और इसके अल्कोहल का फायदा भारत नहीं ले पाता है। वहीं इसका अल्कोहल 45 लाख रूपये लीटर अमेरिका ले जाता है। ऐसे पेड़ों को संरक्षित रखने और इसके संख्या में वृद्धि करने के लिए भारत सरकार को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा हर्रे चूसें फायदा करेगा नुकसान नहीं। हर्रे को धात्री फल कहा गया है। धात्री का मतलब माँँ होता है और माँ कभी अहित नहीं करती है। उन्होंने कहा हमारे यहां प्रकृति ने बहुत कुछ दिया, इसके संरक्षण की जरूरत है। आयुर्वेदाचार्य त्रिपाठी ने कहा गहरे कुएं का पानी, वर्षा का पानी और पहाड़ का पानी अमृत होता है। वातावरण को शुद्ध करने और ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए पीपल, बरगद, पाकड़, गुल्लड़, सफेद मूसली और अश्वगंधा के पेड़ ज्यादा से ज्यादा लगाने की जरूरत है।
बेविनार की शुरुआत विहिसं के प्रदेश अध्यक्ष प्रो.डॉ. देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने किया। मुख्य वक्ताओं में आयुष विभाग झारखंड सरकार के सेवा निवृत्त उपनिदेशक डॉ. भुवनेश्वर सिंह, बीएचयू वाराणसी के डॉ. शैलेन्द्र त्रिपाठी, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय पटना के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. कल्पना वर्मा, वाराणसी के प्रो.डॉ. शान्तनु मिश्रा और अन्य वक्ताओं में डॉ. विजय कुमार सिन्हा, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय के डॉ. विरेन्द्र कुमार, रीतेश कुमार, आशीष कुमार, सुमित कुमार, डॉ. राज राजीव शामिल थे। वहीं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पुरञ्जय कुमार ने किया। उक्त जानकारी विराट हिन्दुस्तान संगम बिहार के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ. विभुरंजन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी।

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