ख़ामोश हो गये योगेश दा—पारो

पारो शैवलिनी “कहो पारो कैसे हो। भाभी कैसी है। बच्चे कैसे हैं।” कितनी आत्मीयता थी उनके इस संबोधन में। मैं जब भी उन्हें फोन करता योगेश दा इन्हीं शब्दों से बात शुरू करते थे। अब कभी उनके ये शब्द मेरे कान में नहीं पड़ेंगे। तरसता छोड़ गये सबको, मुझे भी। उनका मधुवन सूना हो गया।
Complete Reading

Create Account



Log In Your Account