Charchaa a Khas
✍️संजय कुमार सुमन
20वीं सदी के 70 के दशक से अपनी कथा यात्रा शुरू करने वाले चंद्रकिशोर जायसवाल का जन्म 15 फरवरी 1940 को बिहार के मधेपुरा जिले के बिहारीगंज में हुआ। विगत 6 दशकों से अनवरत रचना धर्मिता के प्रति काफी सक्रिय रहे हैं। वे देश के जाने-माने साहित्यकार माने जाते हैं। इस दौरान न केवल उनकी कृतियां ही प्रकाशित हुई बल्कि उनकी कृतियों पर ‘रुई का बोझ’ नामक फिल्म राष्ट्रीय विकास निगम के सहयोग से उनकी कीर्ति गवाह ‘गैर हाजिर’ पर बनाई गई। इस फिल्म में प्रसिद्ध अभिनेता पंकज कपूर ने मुख्य भूमिका अभिनीत की थी। साथ ही रघुवीर यादव एवं रीमा लागू भी अहम रोल में थी। इस फिल्म को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी भारत के प्रतिनिधि फिल्म के रूप में दिखाई गई थी। वहाँ इसे काफी सराहा भी गया था। अब तक उनकी लगभग तीन दर्जन से अधिक पुस्तक आ चुकी है। इनमें उपन्यास एवं कहानी संग्रह दोनों ही शामिल हैं।
अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के जाने के बाद कोसी अंचल में उनकी जगह को अगर भरने का किसी ने काम किया है तो वह चंद्रकिशोर जायसवाल जी हैं। वे प्रेमचंद और फणीश्वर नाथ रेणु की परंपरा में ग्रामीण चेतना और कृषक दृष्टि भूमि के संवाहक कथाकार हैं। जिस प्रकार प्रेमचंद की परंपरा का विकास करने वाले कथाकार के रूप में फणीश्वर नाथ जी को याद किया जाता है। ठीक उसी तरह चंद्रकिशोर जायसवाल जी रेणु की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपने कथा लेखन के द्वारा पिछले 50 साल के दौरान मुख्यतः ग्रामीण समाज में औद्योगिकीकरण और भूमंडलीकरण के प्रभाव व सामाजिक मूल्यों में आए परिवर्तन का दस्तावेज तैयार किया है। यह कथा दस्तावेज रेणु की परंपरा में होते हुए भी उसका दोहराव नहीं विस्तार करता है। जिसमें उनके बाद सामाजिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक चेतना में आए परिवर्तनों की कथा समायी है। चंद किशोर जयसवाल मुलत: ग्रामीण चेतना के कथाकार हैं। इनके कथा साहित्य में विशेष रुप से उपन्यासों में बदलते सामाजिक मूल्यों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है। इनकी कहानियों में अभिव्यक्ति यथार्थ उनका भोगा जाना, समझा और अनुभूत यथार्थ है। कथा साहित्य में इसे हुए सकारात्मक, विडंबनात्मक और गत्यात्मक पात्रों के जरिए अभिव्यक्ति करते हैं। उनका कथा साहित्य मनुष्य को बेहतर मनुष्य बनाने की उम्मीद और आकांक्षा से लवरेज है। इसलिए सामाजिक और अनुभवों को जब रचना में साकार करते हैं तो वहां एक सकारात्मक संचेतना प्रवाहित होती नजर आती है और वहीं उनके लेखन की विशिष्टता बन जाती है।
प्रेमचंद और रेणु भारतीय समाज में गहराई से जड़ जमाए सामंतवाद को खत्म होते देखना चाहते थे। उन्हीं की लीक पर चलते हुए ग्रामीण जीवन के छल छद्म ग्रामीण जनता के भोलेपन वास्तविक स्वराज के सपने को चन्द्रकिशोर जी ने अपनी अनेक कहानियों में रूपायित किया है। ‘हंस’ के मई 1987 में प्रकाशित हुआ ‘हिंगवा घाट में पानी रे’ उनकी बहुचर्चित कहानी है। इस कहानी पर दूरदर्शन द्वारा फिल्म निर्माण और प्रसारण भी हुआ था। साहित्य की दुनियां में स्वयं को ठेठ देहाती घोषित करने वाले चन्द्रकिशोर जायसवाल के पास एक दर्जन से भी अधिक ऐसी कहानियां हैं जिन्हें बेहिचक हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों की सूची में रखा जा सकता है। जैसे “हिंगवा घाट में पानी रे”, “नगबेसर कागा ले भागा’, “दुखिया दास कबीर”, “बिशनपुर प्रेतस्य”, “मर गया दीपनाथ”, “आखिरी ईंट”, “कालभंजक”, “तर्पण”, “सिपाही”, “रिस विष टर्र फिस-इस्स”,”आघात पुष्पा”, “बाघिन की सवारी”, “मेट्रोमोनियल तस्वीर’, “समाधान” समेत सैकड़ों कहानियों का सृजन किया है जो इसमें शामिल है। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष यह नदी बिहार के अनेक क्षेत्रों को अपने आगोश में समा लेती है। सरकार आपदा के तहत पीड़ितों को मुआवजा देती है परंतु राजनीतिक एवं आर्थिक स्वार्थ के कारण इसका कोई स्थाई उपाय नहीं किया गया है अब तक। बाढ़ को केंद्रित कर हिंदी में अनेक कहानियां लिखी गई है। ‘बिशनपुर, प्रेतस्य, हिंगवा घाट में पानी रे” कहानी अपने मार्मिकता एवं भाषा शिल्प के कारण सबसे अनूठी है। जिनमें प्रकारान्तर से राजनीतिक विद्रूपता को प्रकट किया गया है। सांप्रदायिक दंगों की विभीषिका पर केंद्रित चन्द्रकिशोर जायसवाल जी के उपन्यास “शीर्षक” में भी सामाजिक मूल्यों में आ रहे परिवर्तन और गिरावट का यथार्थपरक अंकन किया गया है। चन्द्रकिशोरजी की कहानी को किसी खास विमर्श के खांचे में फिट नहीं किया जा सकता है। ये कहानियां एक व्यापक मानवीय और सामाजिक फलक पर रची गई है जहां मनुष्य का जीवन और मानवीय मूल्यबोध सर्वोपरि है। उनकी कहानियों में व्यक्त जीवन बहुत विविधतापूर्ण है। इतना विशाल जीवन अनुभव और यह जीवन करुणा से ओतप्रोत होकर कथा में उतरता है तो अनंत छटाएं बिखेर देता है। इसलिए जैसी विविधवर्णी कहानी चन्द्रकिशोर जी के पास है, वैसी कम ही लेखक के पास है।
यह कहा जाता है कि बिहार नहीं होता तो हिंदी रचनाशीलता यानि साहित्य इतनी संभव नहीं हो पाती। हिंदी का कथा साहित्य इतना विपुल एवं समृद्ध नहीं होता। इसी कार्य को चन्द्रकिशोर जी ने बढ़ाया है। हिंदी के अत्यंत समर्थ कहानीकार चन्द्रकिशोर जी हैं। चन्द्रकिशोर जी समाज एवं सामान्य जन के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इन्होंने प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थ एवं रेणु के लोक जीवन एवं लोक संस्कृति के खाद को मिलाकर एक नई कथा भूमि तैयार की है। जो उन्हें उनके करीब भी ले जाती है और अलग भी दिखाती है। चन्द्रकिशोर जी ने अपनी कहानियों में सामान्य जन की जिजीविषा, इच्छा, आकांक्षा के साथ-साथ सामंती शोषण नेताओं के छल छद्म सरकार की आमजन के प्रति उदासीनता एवं प्रशासन की लालफीता शाही आदि को शिद्दत के साथ उजागर किया है। उनकी पहली कहानी 38 वर्ष की अवस्था में प्रकाशित हुई थी। तब से अब तक कभी भी उनकी रचनात्मकता मंद नहीं पड़ी। इनके कथा साहित्य विशेष रूप से उपन्यासों में सामाजिक मूल्यों और रिश्तों में आ रहे परिवर्तनों की गहरी पड़ताल की गई है। इनके “पलटनिया” उपन्यास में सामाजिक मूल्यों में आ रहे परिवर्तनों की गहन पड़ताल की गई है। इस उपन्यास का सुखराम नाई गांव के सामाजिक मूल्यों में आ रहे परिवर्तनों पर पैनी निगाह रखता है। दंगा चाहे जैसा भी हो जिस रूप में हो, किसी भी देश एवं जाति के लिए कलंक होता है। दंगे की पृष्ठभूमि पर आधारित अनेक कहानियां हिंदी में लिखी गई है। सांप्रदायिक दंगों की विभीषिका पर केंद्रित चन्द्रकिशोर जी के उपन्यास “शीर्षक” में भी सामाजिक मूल्यों में आ रहे परिवर्तनों और गिरावट का यथार्थपरक अंकन किया गया है।किसानों के कर्ज और उनकी आत्महत्या जैसे मसले भारतीय जनमानस को उद्वेलित करते रहे हैं। इस संदर्भ में इनकी “समाधान” जो कथाक्रम के जनवरी-मार्च माह 2007 में प्रकाशित हुई थी। कहानी किसानों की आत्महत्या की समस्या पर समाधान की तलाश करती वर्तमान राजनीति का विद्रूप चेहरा प्रस्तुत करती है। “मात” कहानी में किसानों के मजदूर बनते जाने की अन्तरगाथा को समेटा गया है। “अनपढ़” कहानी में कर्ज के मकड़जाल में फंसे हुए किसान बूंदीलाल के बेटे की आत्महत्या दिल दहला देने वाली है। जिस पर चन्द्रकिशोर जी की बहुत ही कठोर व्यंग्यात्मक टिप्पणी है। आपातकाल के बाद अद्यतन भारतीय गांव के तेजी से बदलते यथार्थ का अपनी कहानियों में समेटने वाले चंद किशोर जी की “जमीन, किकिकिसान, मात और अनगढ़” कहानियां भी किसान जीवन का मार्मिक चित्रण करने वाली कहानियां हैं। जिनका क्रम से अवलोकन दिलचस्प और आंदोलित करने वाला है। इन दोनों कहानियों के माध्यम से चन्द्रकिशोर जी ने जमीन के प्रति किसान की ममता को उजागर किया है।
चन्द्रकिशोर जायसवाल जी ज्यादातर गांव और कस्बों को आधार बनाकर कहानी लिखी है। जो पाठकों की चेतना पर सीधे असर करती है। ये कोसी अंचल में फणीश्वर नाथ रेणु के बाद सबसे प्रभावशाली कथाकार है। ये मूलतः ग्रामीण चेतना के कथाकार है। उनकी कहानियों में सादगी है, तरलता है, मर्म है, करुणा है। जैसे वे खुद सोचते ज्यादा और बोलते कम हैं। उसी तरह उनके पात्र भी हैं।
👉🏻स्रोत:- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के अध्ययन से संग्रहित
(लेखक संजय कुमार सुमन पिछले 30 वर्षों से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं। दर्जनों पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैकड़ो पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। आधे दर्जन अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इन्हें ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। लगातार विभिन्न विधाओं में अपनी रचना लिखकर एवं सामाजिक कार्य करके समाज को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं)
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