चित्तरंजन में है हिन्दी नाटक को प्रोत्साहित करने की जरूरत: गाँगुली

चित्तरंजन में है हिन्दी नाटक को प्रोत्साहित करने की जरूरत: गाँगुली

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चित्तरंजन। रेलनगरी के एरिया चार स्थित राइटर्स कॉर्नर चित्तरंजन के कार्यालय में रविवार की देर शाम साहित्य अड्डा का आयोजन किया गया। संस्था के महासचिव पारो शैवलिनी ने इसकी शुरुआत करते हुए कहा, चित्तरंजन रेलनगरी में एक तरफ जहाँ रेलकर्मियो की संख्या घट रही है और रेल इन्जन बनने की संख्या लगातार बढ़ रही है। ठीक उसी तरह इस रेलनगरी में हिन्दी भाषियों की बाहुलता के बावजूद हिन्दी नाटकों का लोप होता जा रहा है। सिर्फ हिन्दी ही नहीं बंगला नाटकों को भी आज दर्शक नहीं मिल रहे हैं। नाटककार बिराज गाँगुली ने कहा, इस स्थिति में सुधार लाने की जरूरत है। काम कठिन है। मगर, हिम्मत और लगन से मेहनत की जाय तो क्या नहीं हो सकता। कार्यक्रम की शुरुआत में सिने अभिनेता मनोज कुमार,हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय तथा चिरेका के सेवानिवृत्त रेलकर्मी सह नाटककार रामजीवन गुप्ता की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए एक मिनट का मौन रखा गया। तदोपरान्त, आसनसोल कोर्ट के लॅ क्लर्क पंचम प्रसाद ने भी कहा कि चित्तरंजन में हिन्दी नाटक की दशा और दिशा को ठीक करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, सिर्फ चित्तरंजन ही नहीं पूरे देश में युवा पीढ़ी साहित्य व संस्कृति से कटते जा रहे हैं जो ठीक नहीं है। बच्चों को घर-घर जाकर प्राईवेट ट्यूशन पढाने वाली शिक्षिका रानी प्रसाद ने कहा,देश में रोजगार के अवसर ना के बराबर है। ऐसे में पश्चिम बंगाल के लगभग 25 हजार शिक्षकों की बहाली को रद्द कर दिया गया, इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। नाटक की दशा और दिशा पर बोलते हुए रानी प्रसाद ने कहा,ट्यूशन की कमाई से परिवार की परवरिश करना कितना कष्टदायी है,इसे आसानी से समझा जा सकता है। हाँ,एक हिन्दी भाषी होने के नाते ना सिर्फ चित्तरंजन अपितु मिहीजाम समेत पूरे देश में इसके उत्धान के लिए जरुरी हुआ तो मैं भी रंगमंच पर उतरने के लिए तैयार रहूँगी। कार्यक्रम के अंत में रचनाकार पारो शैवलिनी ने स्वरचित कविता का पाठ किया। ” कविता! किसी विवाहिता की माँग का सिन्दूर नहीं, जिसे पोंछ दिया जाता है, कवि के मरनेके बाद बल्कि, कविता एक मंगल सूत्र है जिसका अस्तित्व जिन्दा रहता है कवि के मरने के बाद भी।” संस्था की कोषाध्यक्ष गौरी देवी ने कहा, किसी भी संस्था के अस्तित्व को जिन्दा रखने के लिए पैसों की जरूरत होती है। संस्था में नये सदस्यों को जोड़ने की जरूरत है।

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