शेखर खगाड़ी के फेसबुक वॉल से

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मानव मस्तिष्क में एक चम्मच के बराबर प्लास्टिक जमा हो चुका है।

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम‌ बायोक्रेसी की भी बात करें। यह भी सच है कि शायद दुनिया में सबसे बुद्धिमान जीव मानव ही है लेकिन मानव क्या प्रकृति को विनष्ट कर जी लेंगे?

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बायोक्रेसी:-आजकल तेलंगाना का जंगल सुर्खियों में है जिसे काटकर IT पार्क बनाने का प्रस्ताव है। सच में मानव ने बहुत तरक्की कर ली है। हमलोग मानवतावादी से मानववादी हुए और अब व्यक्तिवादी की ओर अग्रसर है। जबकि देश-समाज राजशाही से तानासाही होते हुए लोकशाही में आ गया है लेकिन वास्तव में लोकशाही हैं भी या नहीं? हम डेमोक्रेसी को उत्तरोत्तर बेहतर बनाने के प्रयास में लगे हैं और लगना भी चाहिए। क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम‌ बायोक्रेसी की भी बात करें। यह भी सच है कि शायद दुनिया में सबसे बुद्धिमान जीव मानव ही है लेकिन मानव क्या प्रकृति को विनष्ट कर जी लेंगे?

यह मान्यता भी प्रचलित है कि दुनिया की हर चीज का उपयोग मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए अवश्य ही किया जाना चाहिए लेकिन आजतक इसका सही-सही आकलन किसी ने कर नहीं पाया है। हम तो निरंतर बेहतर बनाने के प्रयास में लगे हैं लेकिन आज दुनिया जिस विनाश के मुहाने पर खड़ा हैं इसकी कल्पना की जा सकती है जिसमें जल संकट, जंगल की आग, बाढ़, भूकंप, परमाणु हथियार एवं विभिन्न प्रकार के बीमारियों का लेता विकराल रूप।

डेमोक्रेसी में तो हमें उपलब्ध विकल्पों में से बेहतर चुनने का अधिकार है पर क्या प्रकृति में अन्य जीव-जंतुओं को अपनी जिंदगी चुनने का भी अधिकार नहीं है? जीव-जंतुओं को भी तो जीने का अधिकार मिले जब-तक कि वो किसी अन्य के लिए चरम हानिकारक ना हो! आज नहीं तो कल हमें ये अधिकार उन्हें देना ही चाहिए अन्यथा मानव के किडनी को Arsenic-Iron-Flouride-proof, Plastic proof etc होना होगा, फेफड़ों को Cement proof, Sulphur proof & Dust proof होना होगा, शरीर को Temperature proof और पेट को पत्थर-प्रूफ,केमिकल-प्रूफ बनाना होगा या हमें दुनिया से मिट जाना होगा! हाल ही के रिसर्च में पाया गया है कि मानव मस्तिष्क में एक चम्मच के बराबर प्लास्टिक जमा हो चुका है कितनी भयावह है। बच्चों में ब्लड कैंसर, युवाओं में सुगर-बीपी और बुजुर्गो का तो कहना ही क्या? हम प्रकृति को गुलाम बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन कदाचित यह संभव नहीं है, प्रकृति अपना संतुलन अपने हिसाब से कर ही‌ लेती है। शायद भविष्य में कुछ भी अपने मौलिक अवस्था में ना मिले। दूध -केमिकल युक्त,फल-केमिकल से पकाया हुआ, सब्जी-अनाज खाद से उगाया हुआ, सबकुछ मिलावटी हो चुका है, सब एक-दूसरे को मारने में लगे हैं और नाम दिया गया है कि संसार को सुंदर बनाया जा रहा है। सबको जीने दो यार, क्यों उसके आह को ले रहे हो? आर्तनाद सुनो इतने पत्थर दिल क्यों बनते जा रहे हो? थोड़ी तो सहानुभूति रखो! दिक्कत यह है कि जो निर्णायक पद पर हैं वो शायद ही मानवतावादी है लेकिन उन्हें मानवतावादी होना ही चाहिए जो मानव के साथ समस्त प्राकृतिक संरचनाओं को भी साथ लेकर चल सके। विशेष क्या कहुं? जीयो और जीने दो। शेखर खागड़ी, बांका, बिहार।#Kancha_Forest #Forest #Telangana #Hyadrabad #IT_Park #Animal #Birds

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