साहित्य कोना (कविता)- तुम मुझे संरक्षण दो

साहित्य कोना (कविता)- तुम मुझे संरक्षण दो

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पारो शैवलिनी,

चित्तरंजन,पश्चिम बर्धमान

(पश्चिम बंगाल) 713331

तुम मुझे संरक्षण दो, मैं तुम्हें हरियाली दूंगा

काटो और काटो और-और काटो

क्योंकि कटना ही तो नियति है हमारी

अगर कटेंगे नहीं तो बंटे कैसे कभी छत,

कभी चौखट, कभी खिड़की कभी खंभों के रूप में

तो कभी अस्तित्व प्रहरी दरबाजे के रूप में

तुम झूठला नहीं सकते मेरे अस्तित्व को

अपने वैभवपूर्ण आशियाने के लिए

दुखती रगो पर लेटी कुटिया के लिए

अमीरों के आलीशान पलंग के लिए

गरीबों की टूटी-फूटी खटिया के लिए

तुम झूठला नहीं सकते मेरे अस्तित्व को।

मासूम बच्चों के सपनीले खिलौनों के लिए

बे-सहारा, बे-बस और मजबूर की लाठी के लिए

तुम झूठला नहीं सकते मेरे अस्तित्व को।

चौदह करोड़ के घरों में चूल्हा जलाने के लिए

पेट की ज्वाला मिटाने के लिए

तुम्हारी अंतिम शैय्या की अलमस्त सेज

डेढ़-दो हाथ के अंतिम बाण से

मुखाग्नि के लिए बन सकता हूँ

मैं कटने के बाद ही।

मगर, ये मत भूलो मेरा अस्तित्व जितना जरूरी है

कटने के बाद उससे कहीं अधिक जरूरी है

मेरा जिन्दा रहना पर्यावरण के लिए।

सो, अमल करना होगा एक पेड़ काटने के पहले

दो पौधा अवश्य लगायेंगे, पर्यावरण के नाम पर

एक मेरे मरने के लिए, दूसरा तुम्हारी जिंदगी के लिए

याद रखना

“तुम मुझे संरक्षण दोगे, मैं तुम्हें हरियाली दूंगा

जीवन भर खुशियाली दूंगा।”

admin

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