ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम आयोजित

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मधेपुरा (बिहार) संवाददाता। ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित स्टडी सर्कल (अध्ययन मंडल) योजनान्तर्गत एक संवाद का आयोजन किया गया। इसका विषय ‘जागृवान् स: समिन्धते’ था।

संवाद में मुख्य वक्ता प्रो. (डॉ.) शिवानी शर्मा (चंडीगढ़) थीं। उन्होंने बताया कि ‘जागृति स: समिन्धते’ एक वेदवाक्य है। इसका उल्लेख विष्णु सूक्त मंडल-1, सूक्त 23, मंत्र 21 में हुआ है। इस मंत्र का भावार्थ है कि जो लोग अज्ञानता एवं अधर्म के अंधेरे को छोड़कर विद्या एवं धर्म के प्रकाश में आते हैं, वे ही सर्वोत्तम गुणों से संपन्न होते हैं। वे ही सच्चिदानन्दस्वरूप सब प्रकार से उत्तम सबको प्राप्त होने योग्य निरन्तर सर्वव्यापी विष्णु अर्थात् जगदीश्वर को प्राप्त होते हैं।

उन्होंने बताया कि यह मंत्र बताता है कि ज्ञानवान व्यक्ति अग्नि धारण करता है। अग्नि को अभिधात्मिक पहलू में नहीं बल्कि प्रतीकात्मक दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए। अग्नि यज्ञ में केवल हवि का ही प्रतिनिधित्व नहीं करती, बल्कि इसमें नेतृत्व के गुण और ज्ञान भी निहित है।

उन्होंने बताया कि कश्मीर शैव परंपरा में भी वास्तविकता के दो पहलुओं- प्रकाश और विमर्श का उल्लेख है। प्रकाश तत्व को शिव और विमर्श को शक्ति के रूप में भी माना जाता है। अग्नि का तप पहलू विमर्श और बहुलता, विभाजन का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि प्रकाश का प्रकाश पहलू ज्ञान-ज्ञान है।

उन्होंने यज्ञ की अवधारणा में निहित प्रतीकात्मकता पर भी चर्चा की और इसे कर्मतत्व और कर्मशीलता या कर्ममय जीवन से जोड़ने का प्रयास किया।

मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) जटाशंकर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि भारतीय संस्कृति में जीवन को उसकी संपूर्णता में देखती है। हमने ज्ञान एवं कर्म दोनों के महत्व को स्वीकार किया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आईसीपीआर, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचंद्र सिन्हा ने किया। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में मानवीय मूल्यों, नैतिक संस्कारों एवं सामाजिक सरोकारों के संरक्षण एवं संवर्धन पर जोड़ दिया गया है।

इस अवसर पर भारतीय महिला दार्शनिक परिषद की अध्यक्ष प्रो. राजकुमारी सिन्हा (रांची) एवं पूर्व कुलपति प्रो. कुसुम कुमारी (बोधगया) आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. राजेश कुमार मिश्र (गया) सहित कई लोगों ने प्रश्नोत्तर सत्र में अपने प्रश्न भी पूछे, जिसका मुख्य वक्ता ने संतोषप्रद जवाब दिया।

अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) कैलाश प्रसाद यादव तथा धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। कार्यक्रम का तकनिकी पक्ष डॉ. विनय कुमार तिवारी (भोपाल) और सौरभ कुमार चौहान (मधेपुरा) ने संभाला।

इस अवसर पर प्रो. मोहन मिश्रा, प्रो. पूर्णेन्दु शेखर, डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. संध्या डॉ. अमरेंद्र कुमार, डॉ. चंपावती सरन, डॉ. प्रिया मंडल, डॉ. पुष्पेंद्र जोशी, डॉ. विभुरंजन जयसवाल, देवघर से डॉ. रविशंकर साह, डॉ. संजय कुमार सुमन, TNB College Bhagalpur से हिन्दी के सहायक प्राध्यापक डॉ. अमलेन्दु कुमार अंजन, स्नातकोत्तर गांधी विचार विभाग की छात्रा सरस्वती कुमारी, डॉ. शंभू पासवान, डॉ. शिवेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. ईश्वर चंद, डॉ. महेश कुमार झा, डॉ. नमिता, डॉ. राघवेंद्र दुबे डॉ रागिनी सिंह, डॉ. भरत पटेल डॉ. राणा रणविजय सिंह, डॉ. सारंग तनय आदि उपस्थित थे।

प्रतिभागियों को मिलेगा प्रमाण-पत्र

उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम पूर्णतः नि:शुल्क था। इसमें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 278 प्रतिभागियों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को फिडबैक फार्म भरने के बाद ऑनलाइन प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जाएगा।

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