बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए मनाएं ईको-फ्रेंडली दीपावली

बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए मनाएं ईको-फ्रेंडली दीपावली

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*संपादिका सरस्वती कुमारी से संजय कुमार सुमन की बातचीत के अंश*

संपादिका सरस्वती कुमारी

वरिष्ठ लेखक, साहित्यकार, संजय कुमार सुमन

प्रत्येक वर्ष दीपावली पर पटाखे, केमिकल युक्त चीजें, प्लास्टिक इत्यादि का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। त्यौहार के दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। पर्यावरण और सेहत को ध्यान में रखते हुए हमें प्रदूषण मुक्त दीपावली मनानी चाहिए। इस साल बिगड़ते पर्यावरण के मध्य हम पर्यावरण के अनुकूल या ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने की ओर कदम बढ़ाएं और अपनी खुशियों को सार्थक करें।
उक्त बातें हिंदी एवं अंगिका के साहित्यकार सह अंग अंगिका महोत्सव के संयोजक संजय कुमार सुमन ने कही। उन्होंने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए आमलोगों से ईको-फ्रेंडली दीपावली मनाने का आह्वान करते हुए कहा कि बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हमें पूजा करने के लिए ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का ही प्रयोग करना चाहिए। तेज धमाके और अत्यधिक धुएं वाले पटाखों का इस्तेमाल न करें इससे ध्वनि प्रदूषण तथा वायुमंडल में धुएं फैल जाते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक होता है। बुजुर्गों और अस्थमा व दिल के मरीजों की जान पर बन आती है। पटाखों से बचें और अगर पटाखे छोड़ने ही हैं तो फुलझड़ी और छोटे, कम आवाज एवं कम धुएं वाले पटाखों का इस्तेमाल करें।

दीपावली पर खुशियों के साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा। सरसों के तेल के दीए जलाएं, जिससे प्रदूषण न हो तथा धुएं व तेज आवाज वाले पटाखों से दूर रहे।
उन्होंने कहा कि इस बात से कोई भी अनजान नहीं है कि पटाखों की वजह से हमारे आसपास का पर्यावरण दूषित होता है और ये एयर पॉल्यूशन हम आपको ही नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में आप चाहें तो इस बार ईको फ्रेंडली दिवाली मना सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को पुरानी परंपरा के साथ चलना चाहिए। आजकल लोग मिट्टी के दीये से दूर होते जा रहे हैं। मिट्टी के दीये जलाने से पर्यावरण संतुलित रहता है। बचपन से हमलोग मिट्टी के दीये जलाए हैं। इससे कीड़े-मकोड़े भी समाप्त हो जाते हैं। आज विद्युतीय उपकरण व चमकदार लाईटिंग के लिए लोग विद्युत झालरों का इस्तेमाल जमकर उपयोग कर रहे हैं, इस विद्युतीय प्रकाश से हमारे घरों व आस-पास जगमग हो उठता है लेकिन यह हमारे जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इन वजहों से आज कीड़े मकोड़े मर नहीं रहे हैं बल्कि इसके संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

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