Charchaa a Khas
चीरहरण को देख कर,
दरबारी सब मौन !
प्रश्न करे अँधराज पर,
विदुर बने वो कौन !!
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राम राज के नाम पर,
कैसे हुए सुधार !
घर-घर दुःशासन खड़े,
रावण है हर द्वार !!
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कदम-कदम पर हैं खड़े,
लपलप करे सियार !
जाये तो जाये कहाँ,
हर बेटी लाचार !!
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बची कहाँ है आजकल,
लाज-धर्म की डोर !
पल-पल लुटती बेटियां,
कैसा कलयुग घोर !!
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वक्त बदलता दे रहा,
कैसे- कैसे घाव !
माली बाग़ उजाड़ते,
मांझी खोये नाव !!
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घर-घर में रावण हुए,
चौराहे पर कंस !
बहू-बेटियां झेलती,
नित शैतानी दंश !!
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वही खड़ी है द्रौपदी,
और बढ़ी है पीर !
दरबारी सब मूक है,
कौन बचाये चीर !!
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छुपकर बैठे भेड़िये,
लगा रहे हैं दाँव !
बच पाए कैसे सखी,
अब भेड़ों का गाँव !!
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