साहित्य : चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन

साहित्य : चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन

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डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

चीरहरण को देख कर,

दरबारी सब मौन !

प्रश्न करे अँधराज पर,

विदुर बने वो कौन !!

★★★

राम राज के नाम पर,

कैसे हुए सुधार !

घर-घर दुःशासन खड़े,

रावण है हर द्वार !!

★★★

कदम-कदम पर हैं खड़े,

लपलप करे सियार !

जाये तो जाये कहाँ,

हर बेटी लाचार !!

★★★

बची कहाँ है आजकल,

लाज-धर्म की डोर !

पल-पल लुटती बेटियां,

कैसा कलयुग घोर !!

★★★

वक्त बदलता दे रहा,

कैसे- कैसे घाव !

माली बाग़ उजाड़ते,

मांझी खोये नाव !!

★★★

घर-घर में रावण हुए,

चौराहे पर कंस !

बहू-बेटियां झेलती,

नित शैतानी दंश !!

★★★

वही खड़ी है द्रौपदी,

 और बढ़ी है पीर !

दरबारी सब मूक है,

कौन बचाये चीर  !!

★★★

छुपकर बैठे भेड़िये,

लगा रहे हैं दाँव !

बच पाए कैसे सखी,

अब भेड़ों का गाँव !!

★★★

नोट: इसके किसी भी अंश को तोड़ मरोड़ कर या पूर्णतः कहीं भी प्रयोग करना वर्जित है। ऐसा करने के लिए लेखक व प्रकाशक का लिखित आदेश आवश्यक है। उलंघन करने पर काॅपीराईट अधिनियम के तहत मुकदमा का सामना करना पड़ सकता हैं।

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