खौफ में पत्रकारिता

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खौफ़ मे जी रही है पत्रकारिता, ब्रिटिश हुकूमत के बाद अब फ़िर से नौकरशाह हैं प्रदेश के असली शासक

अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार आलोक उपाध्याय की कलम से

देश में उत्तर प्रदेश का वृहद महत्व है। मौजूदा राजनीति ही नहीं सदियों से यह भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान मुगलिया सल्तनत ने भारतीय सभ्यता को नष्ट करने का जिस तरह प्रयास किया था और पूर्णतः निर्जीव बना दिया इसका कारण था शासको द्वारा सारा नियंत्रण अपने अधीनस्थों को सौप देना, उन्हे क्रूरता, मानवों के दमन, नरसंहार की छूट थी। वही प्रक्रिया मौजूदा समय मे दिख रही है। अपराध कम करने के नाम पर नौकरशाहों को असीमित शक्तियां दे दी गई थी, पूर्व की मायावती सरकार ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया था, किंतु जातिवादी राजनीति के कारण उनके लोगों ने समाज के हर व्यक्ति को निशाने पर ले लिया। लोगों के खिलाफ घृणा फैलाई गई, हजारो आम जन के खिलाफ फर्जी मुकदमे लिखाए गए जिससे फर्जी बहुजन वाद का चेहरा बेनकाब हो गया, मौजूदा समय में प्रदेश मे भाजपा की सरकार है। इन्होंने जन प्रतनिधियो की सारी ताकत छीन ली है उन्हे सिर्फ़ तनख्वाह और पेंशन लेने वाली चलती फिरती लाशें बना दी है। जिला व पुलिस प्रशासन के पास अकूत शक्ति है। जिस वजह से नौकरशाह फर्जी मुकदमों मे लोगों को फंसा रहा है, थानाध्यक्ष गुंडा टैक्स वसूली करवा सकता है, मार पीट कर सकता है, लोगों को जेल भेजने और जिंदगी बर्बाद कर देने तक का प्रयास कर सकता है। एसपी/ एसएसपी/ डीएम/ कमिश्नर किसी भी भ्रष्ट कर्मचारी/ अधिकारी को क्लीन चिट दे सकता है। पत्रकारों की बंधक जैसी स्थिति है। अधिकतर पत्रकार किसी न किसी राजनीतिक दल के सक्रिय कार्यकर्ता या गली कूचे वाले नेता हैं, जिससे पत्रकारिता गर्त में जा रही है। पत्रकारों के साथ हिंसा, अपमान, इन पर फर्जी मुकदमें होना आम बात है। नौकरशाह मानसिक रूप से इतने विक्षिप्त हो चुके हैं कि उन्हे शासन, न्यायालयों का डर नहीं है। उन्हें पता है कि देश में 46% लोग इन न्यायालयों में न्याय मिलने से पहले ही मर जाते हैं। किसी पर फर्जी मुकदमा होने पर उसके जीवन का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाती है, जब तक फैसले आते हैं तब तक इन नौकरशाहों के कई बार ट्रांसफर हो चुके होते हैं। कुछ लोग सेवानिवृत्त हो जाते हैं पत्रकारों पर क्रूरता का कारण उनमें एकता और आपसी संवाद ना होना, जब तक मुसीबत ना आये खुद को बेहतर समझने की सनक भी है राजनीतिक पार्टियों के पत्रकारों को उनके नेताओ के गुणगान से ही फुर्सत नहीं है। जो वास्तविक पत्रकारिता से दूर हैं कथित पत्रकार तो आम लोगों से मिलना ही नहीं चाहते है वह सिर्फ़ अधिकारियों के पीछे घूमने को पत्रकारिता समझते हैं। आम आदमी तो हमेशा से वंचित, पीड़ित, शोषित रहा है। अगर किसी भी जिले के पत्रकार चाह ले तो पूरे जिले के भ्रष्ट, जन विरोधी और आपराधिक मानसिकता से ग्रसित इन नौकरशाहों को रातों रात सुधारा जा सकता है इनकी अवैध संपत्ति, नाजायज रिश्ते, आपराधिक कृत्यो और वीआईपी सिस्टम को उजागर किया जा सकता है

(लेखक अयोध्या से अवध की दुनिया हिंदी दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार मित्र मंडल ब्यूरो चीफ़ हैं)

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