सात हजार से अधिक भाषा हो गई विलुप्त: विराज गाँगुली

सात हजार से अधिक भाषा हो गई विलुप्त: विराज गाँगुली

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चित्तरंजन में मातृभाषा दिवस पर विशेष आयोजन

पश्चिम बंगाल ब्यूरो प्रमुख पारो शैवलिनी
चित्तरंजन। रेलनगरी के एरिया चार स्थित राजा राम मोहन मंच पर अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया। झरना राय के उदबोधनी संगीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में गीत, कविता व आवृत्ति के माध्यम से रचनाकारों ने मातृभाषा की दिशा व दशा की चर्चा की। प्रथम सत्र का संचालन करते हुए विराज गाँगुली ने कहा पूरे विश्व में आठ हजार तीन सौ चौबीस भाषायें बोली जाती है, जिसमें से तकरीबन सात हजार से भी अधिक भाषायें प्रचलन में हैं। अधिकांश भाषायें विलुप्त होती जा रही है। प्रथम चरण में निर्मल मुखर्जी, रेखा मुखर्जी, अरजीत ज्वारकर, पिनाकी मजूमदार आदि ने अपने विचार रखे। वहीं दूसरे चरण में साहित्य सभा का आयोजन किया गया जिसका संचालन प्रियबंधु ने किया। मातृभाषा पर बोलते हुए प्रह्लाद प्रसाद ने कहा, मातृभाषा माँ के समान होती है।जिस तरह से माँ अपनी संतान के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए अट्टालिका की तरह अड़ी रहती है ठीक उसी तरह मातृभाषा भी अपने बोलने वालों के लिए हमेशा ढाल बनकर खड़ी रहती है। इनके अलावा स्वदेश चटर्जी, प्रदीप बनर्जी, अमित नाथ, कल्याण भट्टाचार्जी आदि ने अपने विचार रखे।चित्तरंजन- रूपनारायणपुर सांस्कृतिक चक्र के इस आयोजन को सफल बनाने के लिये सुभाष चंद्र बसु, अमर, गौतम आदि ने काफी मेहनत की।

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