देश के क्रांतिकारी कवि गोपाल सिंह नेपाली के आदमकद प्रतिमा लगाने की मांग

देश के क्रांतिकारी कवि गोपाल सिंह नेपाली के आदमकद प्रतिमा लगाने की मांग

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(भागलपुर से लौटकर पारो शैवलिनी की रिपोर्ट)

चितरंजन। विगत सोमवार 24 फरवरी को देश के पीएम नरेन्द्र मोदी के भागलपुर आगमन पर शब्दयात्रा, भागलपुर की तरफ़ से पाँच सूत्री माँग पत्र सौंपा गया।शब्द यात्रा के पारस कुंज ने पत्रकार पारो शैवलिनी को बताया, भागलपुर रेलवे स्टेशन और बेतिया स्टेशन पर नेपाली उनकी आदमकद प्रतिमा के साथ भागलपुर से बेतिया तक गोपाल सिंह नेपाली एक्सप्रेस ट्रेन चलाई जाय। उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया जाय। बेतिया अवस्थित उनके निवास कालीबाग दरबार को एवं भागलपुर के मारवाड़ी पाठशाला अवस्थित नेपाली सभागार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की माँग की गई। इसके अलावा देश के विभिन्न हिन्दी पाठ्यक्रमों में पूर्व की तरह नेपाली की रचनाओं को समाहित करने की माँग भी की गई। जानकारी के अनुसार, 1962 में चीनी आक्रमण के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए गोपाल सिंह नेपाली जी काव्य-यात्रा पर निकल पड़े। इसी क्रम में 1963 के 17 अप्रैल की सुबह पूर्व रेल मालदा मंडल के एकचारी स्टेशन से भागलपुर आने के क्रम में मात्र 52 साल की छोटी सी उम्र में रेल-डिब्बे में ही वो चल बसे। उनका पार्थिव शरीर भागलपुर जंक्शन पर उतारा गया तथा दूसरी सुबह अठारह अप्रैल को पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन किया गया। नेपाली जी को स्मरण करते हुए एक स्वरचित कविता के माध्यम से पारो शैवलिनी ने उन्हें याद किया।” हम स्वाधीन भारत के सजग प्रहरी हैं, पराधीन रहना हमारी आदत नहीं, हम स्वतंत्र थे, स्वतंत्र हैं,स्वतंत्र रहेंगे। चीन हो या फिर कोई भी विदेशी लुटेरा, उसके डर से न भारत झूका था, न अब झुकेगा। है मन चंगा तो कठौती में है गंगा, लालकिले के साथ-साथ चौदह करोड़ के दिलों में फहरता है तिरंगा।

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