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Charchaa a Khas
साहित्य कोना (कविता)
जीवन में मुझको मिले, ऐसे लोग विचित्र।
काँधे मेरे जो चढ़े, खींचे खुद के चित्र ।।
जैसी जिसकी सोच है, वैसी उसकी रीत।
कहीं चाँद में दाग तो, कहीं चाँद से प्रीत।।
ये कैसी नादानियाँ, ये कैसी है भूल।
आज काटकर मूल को, चाहें कल हम फूल।।
पद-पैसों की दौड़ में, कर बैठे हम भूल।
घर-गमलों में फूल है, मगर दिलों में शूल।।
जब तक था रस बांटता, होते रहे निहाल।
खुदगर्जी थोड़ा हुआ, मचने लगा बवाल।।
चूहा हल्दी गाँठ पर, फुदक रहा दिन-रात।
आहट है ये मौत की, या कोई सौगात।।
अपनों के ही दर्द का, नहीं जिन्हें आभास।
उनमें होकर भी नहीं, होने का अहसास।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ