Charchaa a Khas
प्रियंका सौरभ
बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए और उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना चाहिए ताकि वो आने वाले तनाव का सामना आसानी से कर पाए। हिसार के ओजस हेल्थ सेंटर की संचालिका
डॉ सुशीला कहती है कि नियमित योग प्राणायाम सहायक है। योग, आयुर्वेदिक चिकित्सा से समय समय पर अपनी और बच्चों की व्याधि का निदान और परामर्श लेते रहें और हमारे हेल्थ सेंटर में निदान के लिए प्रकृति परि क्षण, उचित निदान, पंचकर्म,शिरोधारा आदि उपलब्ध है।
डॉ सुशीला के अनुसार बच्चों को स्वर्णप्राश औषधि एक अनुभवी चिकित्सक के दिशा निर्देश में दी जानी चाहिए।
बच्चे के लिए प्रतिरक्षक तन्त्र का निर्माण करने वाला एक आयुर्वेदिक संस्कार है सुवर्ण प्राशन। सुवर्णप्राशन वह प्रक्रिया है, जिसमें स्वर्णभस्म (सोने की शुद्ध राख) को जड़ी-बूटियों के अर्क से तैयार घी और तरल या सेमी-सॉलिड रूप में शहद के साथ मिलाकर बच्चों को दिया जाता है। यह एक ऐसा दिव्य औषध है जो बच्चों के शारीरिक और साइकोलॉजिकल लेवल के पूर्ण विकास में मदद करता है। स्वर्ण भस्म को संस्कारों के मर्दन से तैयार किया जाता है। ये मस्तिष्क की क्षमताओं को बढ़ा देता है इसलिए शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों ऑटिज्म हाइपरएक्टिव बच्चों और कमजोर याददाश्त वालें बच्चों के लिए वरदान है। आज के वातावरण में ये बहुत जरूरी है। आज हमारे बच्चों का सामना नींद नहीं आने, वायरस, बैक्टीरिया और तरह-तरह के प्रदूषण से होता है जिससे बच्चें या हम बार-बार बीमार पड़ते हैं। स्क्रीन के प्रयोग ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ा है। आजकल ऑटिज्म हाइपरएक्टीव, मिर्गी के दौरे बच्चों में बहुत देखने को मिलने लगे हैं। इन सब से बचाव और उनके प्रभावी प्रबंधन के लिए स्वर्णप्राश आवश्यक है।
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना होता है. जिसमें बच्चों के जन्म के 1 साल तक बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. मां का पहला गाढ़ा दूध कोलेस्ट्रॉम
बच्चों के लिए बहुत अच्छा होता है. यह बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है. जन्म के 6 महीने तक उसे केवल मां का दूध ही देना चाहिए। यदि मां का दूध कम बनता है या किसी कारणवश नहीं बन पाता तो बच्चे को बकरी या गाय का दूध पतला करके देना चाहिए। बच्चों की आंत फॉर्मूला मिल्क के लिए ग्राह्य नहीं होती। अतः उसे बकरी या गाय का दूध ही दें।वह भी ना मिले तो भैंस का दूध पतला करके देना चाहिए। जिस बच्चे को जन्म से ही स्वर्ण प्राशन शुरू होता है वो बच्चे बीमारियों के लिए लड़ने की क्षमता पा लेते हैं।
कमजोर बच्चों को आमतौर पर बीमारियों से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दवाई दी जाती है। और बार-बार दी जाती है तो उसके आंतें कमजोर हो जाती है और बच्चे के लीवर और आंतों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उसे मां का दूध, स्वर्णप्राश और उचित दिनचर्या के साथ उचित आहार देकर इन समस्याओं से बचाए। 6 महीने का होने पर उसे फलों का रस और दाल का पानी देना चाहिए। 8 माह पर बच्चें को सेमीसॉलि़ड फूड जैसे पतली खिचड़ी, दलिया, दही, पेस्ट फ्रूट्स और सब्जियां पतली कर कर के दे सकते हैं। धीरे-धीरे उसका टेस्ट डेवलप हो जाता है और वह चबाकर खाना सीख जाता है। तब उसे रोटी सलाद फल भी दे सकते हैं। बच्चा अपनी उम्र के अनुसार सही विकास कर रहा है। इस बात पर ध्यान रखना चाहिए। बच्चा तीन माह पर गर्दन संभालना सीख जाता है। आपसे आंखें मिलाता है और मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुरा कर देना सीख जाता है। समय पर बैठना, घुटनों के बल चलना , खड़े होकर चलना, बोलना सीख पाता है या नहीं इस पर ध्यान की आवश्यकता है। बच्चा अपना नाम पुकारने पर नोटिस करता है, आपको पहचानता है और अपनी उम्र के अनुसार शारीरिक और मानसिक गतिविधियां कर पाता है तो उसका विकास सही हो रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो योग्य चिकित्सक से परामर्श करें। क्योंकि ऐसा बच्चा अंडर डेवलपमेंट के साथ-साथ हाइपर एक्टिव या डिलेड स्पीच हो सकता है। बच्चे को सही खाना घर का पॉजिटिव वातावरण समाज में हमउम्र बच्चों से उसका इंटरेक्शन, समय पर उचित इलाज और स्वर्णप्राश प्रक्रिया बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद रहती हैं।
बच्चों के सोने और उठने का समय तय कीजिए। उसे नियमित प्राणायाम करवाए। उनकी नियमित मालिश होनी चाहिए। उम्र के अनुसार विभिन्न शारीरिक प्राणायाम की गतिविधियों को सम्मिलित करें। अपने बच्चों को फोन या टीवी पर ज्यादा समय नहीं बिताने दें और उसके घर के खाने की आदत डालें और मार्केटफूड या जंक फूड से दूर रखें तो निश्चित ही उनका सही विकास होगा। बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए और उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना चाहिए ताकि वो आने वाले तनाव का सामना आसानी से कर पाए। हिसार के ओजस हेल्थ सेंटर की संचालिका डॉ सुशीला कहती है कि नियमित योग प्राणायाम स्वस्थ रहने में सहायक है। योग आयुर्वेदिक चिकित्सा से समय समय पर अपनी और बच्चों की व्याधि का निदान और परामर्श लेते रहें और हमारे हेल्थ सेंटर में निदान के लिए प्रकृति त परिक्षण, उचित निदान, पंचकर्म ,शिरोधारा आदि उपलब्ध है।
डॉ सुशीला के अनुसार बच्चों को स्वर्णप्राश औषधि एक अनुभवी चिकित्सक के दिशा निर्देश में दी जानी चाहिए। स्वर्ण प्राशन संस्कार सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक संस्कार है. जो बच्चे के जन्म से लेकर 18 वर्ष की आयु तक कराया जाता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य मे अहम भूमिका निभाता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार से बच्चों को विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता मिलती है. ऋषि मुनियों के द्वारा हजारों वर्षों पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन का निर्माण किया गया जिसे स्वर्ण प्राशन कहा जाता है. आयुर्वेद के द्वारा आज भी उसे जीवंत रखा गया है. स्वर्ण प्राशन संस्कार स्वर्ण (सोना) के साथ घी, शहद, ब्रह्मी, अश्वगंधा, गिलोय,शंखपुष्पी,वचा जैसी जड़ी बुटियों से निर्मित किया जाता है. इसके सेवन से बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास बेहतर होता है।
(लेखिका रिसर्च स्कॉलर और कवयित्री हैं)