अंग की मातृभाषा अंगिका ही है

अंग की मातृभाषा अंगिका ही है

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अंग क्षेत्र की भाषा अंगिका ही है जो प्रमाणिक है। यहां की लोक प्रिय अंगिका भाषा और यहां की लोक कला मंजूषा पेंटिंग्स एवं लोक आस्था का महापर्व छठ व लोक गाथा बिहुला विषहरी यहां की पहचान है।

तिरहुता लिपि को जानकी लिपि और मिथिलाक्षर बताने वाले लोग अंगिका को भी अपने साथ जोड़कर अंगक्षेत्र की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। तिरहुतिया बोली और लिपि को मिथिलाक्षर बोलने और मैथिली लिपि बताने पर दरभंगा महाराज ने अपने कार्यकाल में रोक लगा दिया था। दरभंगा महाराज ने अपने आदेश में कहा था कि हमारी भाषा हिन्दी है और लिपि देवनागरी।

वर्तमान में मैथिली लिपि को स्थापित करने के लिए तिरहुता लिपि और कैथी लिपि को मिलाकर मिथिलाक्षर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास में भारतीय भाषा संस्थान मैसूर के शोधार्थी के सहयोग से क्षेत्र में घूम घूम कर कार्यशाला और प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है। जिसमें भारत सरकार के लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं जो चिंतनीय है।

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