ऐ जिन्दगी मैं क्या लिखुँ, किसके जीवन का प्रकाश, किसका अनुप्रास लिखुँ

ऐ जिन्दगी मैं क्या लिखुँ, किसके जीवन का प्रकाश, किसका अनुप्रास लिखुँ

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पुस्तक लोकार्पण सह कवि गोष्ठी आयोजित

सुल्तानगंज (भागलपुर)। स्थानीय अशोका ग्रांट पैलेस जहाज घाट सुलतानगंज में अजगैबीनाथ साहित्य मंच सुलतानगंज के बैनर तले पुस्तक लोकार्पण सह कवि गोष्ठी का आयोजन मंच के अध्यक्ष भवानंद सिंह की अध्यक्षता मे आयोजित की गई । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार कुमार कृषणन थे। जिन्हें मंच की तरफ से संस्थापक सदस्य कवि डा. श्यामसुन्दर आर्य द्वारा माल्यार्पण, अंगवस्त्र, प्रशस्ति-पत्र तथा मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।


मंच के तरफ से प्रकाशित काव्य संकलन उर्वी का लोकार्पण मुख्य अतिथि कुमार कृषणन और अति विशिष्ट अतिथि के रूप में भागलपुर से पधारे पारस हरिकुंज, महेंद्र निशाकर, नाथ दिवाकर, हीरा प्र. हरेंद्र, सुधीर कुमार प्रोग्रामर व प्रदीप पाल द्वारा संयुक्त रुप से किया। सभी वक्ताओं ने पुस्तक के प्रकाशन पर हर्ष व्यक्त किया। मुख्य अतिथि कुमार कृषणन ने कहा जब कोई किताब का प्रकाशन होता है तो समाज कई युगों को जीता है, किताब हमारे जीवन की शैली और हमारी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। किताब का विकास हमारी सभ्यता का निर्माण है।
वहीं सुधीर प्रोग्रामर ने कहा किताब शहर और गाँव दोनों को जिंदा रखती है, यही हमारी तहजीब का प्रतिबिम्ब है। पारस हरिकुंज ने कहा पुस्तक हमारी संस्कृति और स्वभाव पर नियंत्रण रखकर हमें मानवीय सत्ता का अधिकारी बनाता है। वहीं मंच के अध्यक्ष भवानंद सिंह ने कहा कि पुस्तक का प्रकाशन किसी भी काल खंड को परिभाषित ही नहीं करता बल्कि वह उस युग के यथार्थ का उत्तराधिकारी होता है। वही संपादक ब्रह्मदेव बंघु ने पुस्तक के प्रकाशन को बौद्धिक संपदा बताते हुए उसे समय का आईना बताया। त्रिलोकी नाथ दिवाकर ने किताब के प्रकाशन पर कहा किताब हमारे सच्चे मित्र हैं यही सच्ची राह बताता है।समकालीन कविताओं और गजलों का अनुठा संग्रह उर्वी का संपादन भवानंद सिंह और ब्रह्मदेव बंधु ने संयुक्त रूप से किया है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी की शुरुआत सुधीर प्रोग्रामर के संचालन मे शुरु हुई। सर्व प्रथम उष किरण साहा ने गुड़ की प्रासंगिकता पर कहा – सबके मन के भावै छै, मुँह मिट्ठो करवावै छै।वहीं कपिलदेव कृपाला ने सरस्वती वंदना गाकर मंत्र मुग्ध किया। पारस कुंज ने गजल में कहा – मुझे गैर क्यू देखकर जल रहे हैं, मैं अपने वतन पे गजल कह रहा हूँ।
त्रिलोकी नाथ दिवाकर अंगिका में किसान के खुशियों को यूँ बयां किया – झूमै छै किसान हो भैया झमकै छै किसान। देखी के खरिहान ….। वहीं दिलीप कुमार दीपक ने गजल में कहा मुझे समझ नही आती ये कौन सी दुनिया है, सच को जरूरत गवाह की ये कौन सी दुनियां है। खड़गपुर से पधारे गजलकर ब्रह्मदेव बंघु ने कहा – किसने छुआ है जिस्म में हलचल सी हो गई। सूखी पड़ी थी जिन्दगी बादल सी हो गई।
युवा शायर एम सलमान बी ने कहा – तुमसे मिलना मुश्किल है, फिर से चाहना मुस्किल है।
भोला बागवानी ने आज की लडकियों को रेखांकित करते कहा – श्रद्धा जैसी बेटी कब तक मारी जाएगी.., प्यार की खातिर कब तक मारी जाएगी।
महेंद्र ‘निशाकर’ ने कहा – यारों पहुँचने को मंजिल एक डगर चाहिए, हर सफर के लिए हमसफर चाहिए।
मनीष गूंज ने कहा – प्यार हो पर्दा तले तो ठीक है, साथ जीवन भर चले तो ठीक है। श्यामसुन्दर आर्य ने अंगिका मे व्यंग पढ़ते हुए कहा -हे हो कहबौं तें कहबो कि कहै छहो, मरदो मे जनमी के मौगी रंग रहै छहो …कहबो तै कहबो कि कहै छो। वहीं एस के प्रोग्रामर ने अपनी धुन मे कहा – प्यार में तर बतर नही होते, हीर राँझा अमर नही होते।
वहीं मंच के अध्यक्ष भवानंद सिंह ने अध्यात्मिक रचना का पाठ किया – ऐ जिन्दगी मैं क्या लिखुँ, किसके जीवन का प्रकाश किसका अनुप्रास लिखुँ,
ऐ जिन्दगी मैं किसका श्वांस लिखुँ।
वहीं हीरा हरेन्द्र ने अंगिका मे कहा – राम चंद्र परमेश्वर छेकै तों ई बात के मानो …।
वहीं अमरेंद्र कुमार ने एक व्यंग्य रचना – मै समाजसेवी हुँ, पढ़कर वाहवाही लूटी।
रामस्वरूप मस्ताना ने कहा – खिलखिलाना सीख लो ,मुस्कुराना सीख लो।

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