हाथियों के कहर से झारखंड में हर साल दर्जनों लोगों की जाती है जान

हाथियों के कहर से झारखंड में हर साल दर्जनों लोगों की जाती है जान

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ग्रीन ट्रिब्युनल बना पंगु

झारखंड में असुरक्षित महसूस कर रहे गजराज अब रांची को भी बना रहे हैं निशाना

***झारखंड संवाददाता की विशेष रिपोर्ट***

हाथियों और मनुष्यों के बीच टकराव के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हर साल जानमाल की हानी हो रही है। पिछले पांच वर्षों में देशभर में 2479 से अधिक लोगों की जान हाथी ले चुके हैं। वहीं पांच साल में 1300 से अधिक हाथियों की भी जान चली गई। हाथियों और मनुष्यों के बीच इस टकराव की घटना सबसे ज्यादा झारखंड में हुए हैं और हो भी रहे हैं। इन घटनाओं के बीच झारखंड एसोसिएशन ने हाथियों और मनुष्यों के बीच बढ़ते टकराव को लेकर ग्रीन ट्रिब्युनल से न्याय की गुहार लगाई है। एसोसिएशन की तरफ से बताया गया है कि हाथी हर माह लोगों की जान ले रहे हैं। झारखंड में आए दिन ऐसी घटना सामने आ रही है जिसमें मासूम लोगों को हथियों के गुस्से का शिकार होकर अपनी जान गंवानी पड़ रही है।

जानकार बताते हैं कि 14 दिसंबर 2022 को झारखंड के बोकारो जिलान्तर्गत गोमिया प्रखंड के झुमरा पहाड़ की तलहटी स्थित अंबाटांड़ गांव में अपुरगिया देवी नामक 74 वर्षीय महिला को हाथियों ने कुचल दिया। वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले के नीमडीह प्रखंड के हुटू गांव के 87 वर्षीय श्याम गोप को हाथियों ने कुचल कर मार डाला। वह सुबह शौच के लिए अपने घर से बाहर निकले थे। हाथियों द्वारा मनुष्यों को मारे जाने की खबर हर दूसरे-तीसरे दिन मिल रही है। झारखंड गठन से लेकर अबतक 1480 से अधिक लोगों की जान हाथी ले चुके हैं। वहीं दूसरी ओर 92 हाथियों की भी जान चली गई है। वर्ष 2009—10 से लेकर अबतक करीब 835 लोगों को हाथियों ने मार डाला। सरकार मुआवजे के रूप में 17 करोड़ रुपए बांट चुकी हैं।
पिछले पांच वर्षों में हाथियों के हमले में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। राजधानी रांची के अनगड़ा, बुंडू, तमाड़, सोनाहातु, सिल्ली, नगड़ी सहित दर्जनों गांव हाथियों के उत्पात से त्रस्त हैं। वहीं कोल्हान और आसपास के क्षेत्र में जंगली हाथी अब गांव के आसपास अपना बसेरा बना रहे हैं। गांव में ग्रामीणों के घर तोड़ रहे है। फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बता दें कि एलिफैंट कॉरिडोर बनाने से लेकर कई योजनाओं पर झारखंड में काम चला रहा है। वहीं दूसरी तरफ हाथी और मनुष्यों के बीच लगातार हो रहे टकराव की घटना चिंता का विषय बना हुआ है।

झारखंड में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं हाथी ?
आखिर हाथियों का उत्पात क्यों बढ़ रहा है?
हाथी जंगल छोड़ गांव और शहर में क्यों दाखिल हो रहे हैं?
हाथियों और मनुष्यों के बीच बढ़ रहे टकराव को कैसे रोका जा सकता है?

ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब सरकार के पास नहीं है।

क्या अपने आश्रयस्थली के नुकसान से उत्पात मचा रहे हैं हाथी ! यह सवाल सबसे अहम है।

झारखण्ड में हाथी राजकीय पशु घोषित है। हाथियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर कई योजनाओं पर काम चल रहा है। इसके बाद भी हाथी जंगल से बाहर निकल रहे हैं, गांव और शहर में दस्तक दे रहे हैं। यह बेहद गंभीर चिंता का विषय है। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रदेश में सिंहभूम के जंगल हाथियों के प्राकृतिक आवास के लिए काफी मशहूर थे, लेकिन पिछले तीन दशक में हाथियों की प्राकृतिक आश्रयस्थली को काफी क्षति पहुंची है। विशेषज्ञ के अनुसार हाथियों का आश्रयस्थली क्षति होने का मुख्य कारण है खनन के लिए विस्फोट में बढ़ोत्तरी और सड़क एवं रेलवे लाइन का विस्तार। वहीं दूसरी तरफ हाथियों के कॉरिडोर में आबादी का बसना सबसे बड़ा कारण है। कॉरिडोर डिस्टर्ब होने से हाथियों के आवागमन व रहन सहन प्रभावित होता है। जिससे हाथी झुंड में जंगल से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते है। जंगल से बाहर निकलने पर क्रोधित हाथी का मनुष्य के साथ टकराव हो जाता है।

प्रदेश में घट रही हाथियों की संख्या

प्रदेश में हाथी राजकीय पशु घोषित है। देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या के 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं। इसके बाद भी हाथियों की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है। यहां पर पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी, वहीं ये संख्या अब घटकर 555 रह गई है। मालूम हो कि हर पांच साल के बाद हाथियों की गणना होती है। अंतिम गणना 2017 में हुई थी। गणना के दौरान पाया गया है कि हाथी झारखंड छोड़ पड़ोस के राज्यों में भी शिफ्ट हो रहे हैं।

किस वर्ष कितने लोगों को हाथियों ने अपना शिकार बनाया यह जानना भी बेहद जरूरी है –
वर्ष मृतकों की संख्या
2009—10 54
2010—11 69
2011—12 62
2012—13 60
2013—14 56
2014—15 53
2015—16 66
2016—17 59
2017—18 84
2018—19 87
2019—20 84
2020—21 97
2021—22 83
2022-23 47 अबतक

सरकार की ओर से मुआवजे का भी है प्रावधान

मनुष्य की मृत्यु पर— चार लाख रूपए
गंभीर रूप से घायल को— एक लाख रुपए
साधारण घायल होने पर — 15 हजार रुपए
स्थायी रूप से अपंग होने पर — दो लाख रुपए
पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त मकान का — 1.30 लाख रुपए
गंभीर रुप से क्षतिग्रस्त मकान, पक्का — 40 हजार रुपए
साधारण रुप से क्षतिग्रस्त मकान, कच्चा — 20 हजार रुपए

भंडारित अनाज, प्रति क्विंटल — 1600 रुपए, अधिकतम 8 हजार

भैंस, गाय व बैल की मृत्यु पर — 15 से 30 हजार
बछड़ा—बाछी की मौत पर — 5 हजार

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