Charchaa a Khas
भागलपुर ब््यूरोो ब््यूरो (कुुंदन राज़) ।
भागलपुर। श्री दिगंबर जैन मंदिर भागलपुर परिसर में मुनि प्रवास कार्यक्रम के तहत
विशल्य वाणी अर्थात प्रवचन में परम पूज्य विशल्य सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि यह सब सांसारिक पदार्थ सुख के कारण नहीं है, जिसके पास सारी सुख संपदाएँ हैं, भौतिक साधन है। यह सब सुख का कारण नहीं है यदि पदार्थ हमेशा सुख का कारण है, तो सारे पदार्थ हमेशा सुख के कारण होना चाहिए, लेकिन नहीं वही पदार्थ हमारे दुख के कारण बन जाते हैं। यदि पदार्थों में सुख और शांति होती तो चक्रवर्ती अनुभव करता है, यह भौतिक संसाधन सुख के साधन नहीं है, वह तृण समान सब कुछ छोड़ देता है। वह जानता है कि जो अव्यावाध सुख निराकुलता सुख भोगों में नहीं होती है योगी को होता है। इन्द्रिय आधीन जो सुख है वह सुख नहीं है सुखाभाष है। सुख दो प्रकार के होते हैं, एक तात्कालिक और दूसरा त्रैकालिक सुख है। हम जो मान रहे हैं वह तात्कालिक सुख है, और जो हमारे पास है वह त्रैकालिक सुख है।
एक में कभी द्वंद नहीं होती लेकिन एक साथ जैसे ही जुड़ता है तो दोनों द्वंद पैदा हो जाता है। संयोग होना अलग बात है और साथ होना अलग बात है, जीव नाना पर्यायों से आता है। संयोग स्थापित करता है, लेकिन साथ नहीं देता, यही संसार है। एकत्व अनुप्रेक्षा का चिंतन करने से हमारे अंदर का राग और द्वेष दोनों टूटते हैं, इस संसार में जीव अकेला आता है अकेला ही जाता है, और अकेला ही संसार में घूमता है। कोई किसी का साथ नहीं देता है, एक राग की दशा में, एक द्वेष की दशा में, एक वीतराग की दशा में एकत्व होता है। सबके साथ रहना कोई परेशानी नहीं लेकिन सबके साथ नहीं रहना, मिलना जुलना कोई बात नहीं, लेकिन घुलना मिलना नहीं जहां पर कर्तव्य और भक्तित्व बुद्धि आ जाती है, तो जीवन के लिए समस्याएं हो जाती है। चक्रवर्ती भी छ: खण्ड का संचालन करता है, उसमें रमता नहीं जल से भिन्न कमल की तरह रहता है। जिसमें चार प्रकार के लोग होते हैं, अकेले रहते हैं, अकेले जीते हैं, अकेले रहते हैं भीड़ में जीते हैं, भीड़ में रहते हैं अकेले जीते हैं,
भीड़ में रहते हैं भीड़ में जीते हैं। वही इस कार्यक्रम में सैकड़ों जैन समाज के लोगों के साथ साथ जैन परिवार के लोग मौजूद थे।